किस्सा अटलजी का : 20 साल पहले धोती गिफ्ट करने वाले को पलभर में पहचान लिया
अटलजी की जन्मस्थली होने का गौरव ग्वालियर को प्राप्त है। इसके साथ ही प्रदेश के मालवा प्रांत का भी अटलजी से गहरा संबंध रहा है।
By Yogendra Sharma
Edited By: Yogendra Sharma
Publish Date: Thu, 14 Jun 2018 09:18:11 AM (IST)
Updated Date: Fri, 24 Dec 2021 06:58:40 PM (IST)
योगेंद्र शर्मा, मल्टीमीडिया डेस्क : अटल बिहारी बाजपेयी, भारतीय राजनीति की एक ऐसी शख्सियत, जहां से राजनीति की नैतिकता की शुरूआत होती है। अटलजी का व्यक्तित्व हमेशा विराट रहा, उनके इरादे बुलंद रहे, संघर्षों में तपकर वह कुंदन बने, उनकी भाषाशैली का विपक्ष भी कायल रहा और उनके तीखे और कटाक्ष भरे भाषणों से विपक्ष हमेशा आहत होता भी रहा, लेकिन इन सब बातों से अलग अटलजी का सादगीभरा अंदाज भी उनके व्यक्तित्व की विशिष्ट पहचान है।
अटलजी की जन्मस्थली होने का गौरव ग्वालियर को प्राप्त है। इसके साथ ही प्रदेश के मालवा प्रांत का भी अटलजी से गहरा संबंध रहा है। प्रभास प्रकाशन की बुक ’ मै अटल बिहारी बाजपेयी बोल रहा हूं ‘ में अटलजी ने कहा कि ‘ जब मैं पहली बार भाषण देने के खड़ा हुआ तथा उस वक्त मैं बड़नगर में था। वहां पर मेरे पिताजी हेडमास्टर थे। वार्षिकोत्सव का अवसर था और मैं बगैर तैयारी के मंच पर खड़ा हो गया। बीच में मैं लड़खड़ा गया इसलिए भाषण को बीच में ही बंद कर स्टेज को छोड़ना पड़ा। उस वक्त मैं पांचवी क्लास में था और मैने इस वाकये को गंभीरता से नहीं लिया। ‘
अटलजी को दी पुरानी की जगह नई धोती –
ऐसा ही एक दिल को छू जाने वाला वाकया उज्जैन से 40 किलोमीटर दूर तराना कस्बे में हुआ था। यह वह समय था जब संघ अपनी पहचान बनाने के दौर से गुजर रहा था। अटलबिहारी बाजपेयी संघ के त्याग, तपस्या और आदर्शों की भट्टी में तपकर एक आदर्श स्वयंसेवक बने थे। यह 1960 की बात है जब संघ प्रचारक बनकर संघ के किसी काम के सिलसिले में वे तराना गए हुए थे। उस वक्त संघ प्रचारक किसी उचित जगह की तलाश कर वहां पर अपनी दिनचर्या व्यतीत करते थे। क्योंकि संघ कार्यालय के भवन उस समय बड़े नगरों में भी नहीं थे। ऐसे में तराना जैसे छोटे कस्बे में जाकर अटलजी ने अपना ठिकाना वहां के प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर जिसको कुंड का द्वारकाधीश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, को बनाया।
अटलजी ने द्वारकाधीश मंदिर तराना में गुजारी थी रात –
इसके बात की दिलचस्प और आदर्शवादी कहानी को नगर के संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता और भाजपा के वरिष्ठ नेता ओमप्रकाश पलोड़ ने बताई। द्वारकाधीश मंदिर में रात गुजारने के बाद अटलजी सुबह स्नान और भोजन करने के लिए मदनलाल रेटीवाले के आमंत्रण पर उनके घर पहुंचे। मदनलाल रेटीवाले के यहां पर जब वह स्नान के लिए बाथरुम में गए तो अपनी धोती उतार कर बाहर खूंटी पर टांग गए।
मदनलालजी ने जब अटलजी की धोती को देखा तो वह कई जगहों से फटी हुई थी और उसमे बेतरतीब तरीके से पैबंद लगे हुए थे। चूंकि मदनलालजी भी संघ के समर्पित कार्यकर्ता थे इसलिए उनको यह नागवार गुजरा कि संघ का कोई प्रचारक इस हालत में उनके घर से विदाई ले। वह कपड़े के कारोबारी भी थे, इसलिए उन्होने तुरंत अपनी दुकान से बेहतरीन एवन ब्रांड की धोती मंगवाई और फटी हुई पैबंद लगी धोती की जगह नई धोती टांग दी।
दो धोती लेने से कर दिया था इंकार –
अटलजी जब स्नान कर बाहर निकले तो उन्होने अपनी पुरानी धोती के बारे में पूछा कि ’ वह कहां है? ‘ तब मदनलालजी ने कहा कि ‘ आपकी धोती फट गई थी इसलिए उसकी जगह मैने नई धोती मंगवा दी है। ‘ अटलजी ने तराना की इस भेंट को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अटलजी जब खाना खाने के बाद मदनलालजी के घर से प्रस्थान करने लगे तो उनको अपना कपड़े का झोला कुछ भारी लगा।
तब उन्होंने उस झोले में देखा तो एक और उम्दा किस्म की धोती झोले में रखी हुई थी। उन्होने कहा कि ‘ यह क्या है ? ‘ तब मदनलालजी ने कहा कि ‘ दूसरी धोती भी आपके लिए है आप इसको बदल कर पहनते रहना ‘, लेकिन आदर्शवादी अटलजी ने दूसरी धोती को लेने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि ‘ दूसरी धोती की जरूरत नहीं है और जब जरूरत होगी तो जहां पर रहूंगा वहां के संघ कार्यकर्ता इंतजाम कर देंगे।‘
20 साल बाद भी पहचान लिया धोती गिफ्ट करने वाले को –
इस बात को लंबा अरसा हो गया। इसके 20 साल बाद जब उज्जैन से जनसंघ के वरिष्ठ नेता सत्यनारायण जटिया ने जब राजनीति में पदार्पण करते हुए अपना पहला चुनाव लड़ा तो। अटलजी उनके प्रचार के लिए बतौर नेता जनसंघ उज्जैन पधारे। क्षीरसागर में अटलजी की सभा का आयोजन किया गया। उस वक्त मंच पर अटलजी के स्वागत के लिए मदनलाल रेटीवाले हार पहनाने गए तो 20 साल बाद अटलजी ने उनको पहचान लिया और उनके दोनों हाथ पकड़कर कहा कि ‘ आप वही एवन ब्रांड धोतीवाले मदनलालजी हो न ?’ इस तरह अटलजी ने अपने मुफलिसी के दिनों में भी अपने आदर्शवाद को कायम रखा साथ ही तराना के मदलालजी रेटीवाले की धोती के प्रसंग को भी वह कभी नहीं भूले।