Raksha Bandhan 2024: भद्रा के दौरान क्यों नहीं बांधी जाती राखी, पढ़ें रक्षाबंधन से जुड़ी जरूरी बातें
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार रक्षाबंधन पर कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही रक्षाबंधन पर इस साल भद्रा का साया बना रहेगा। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने भद्रा को आकाश मंडल में स्थित होने की आज्ञा दी, ताकि भद्रा का प्रभाव पृथ्वी पर कम से कम पड़े।
By Ekta Sharma
Publish Date: Sat, 03 Aug 2024 11:49:34 AM (IST)
Updated Date: Sun, 04 Aug 2024 10:30:00 AM (IST)
HighLights
- रक्षाबंधन के दिन दोपहर 12:30 बजे तक भद्राकाल रहेगा।
- पुराणों में भद्राकाल को एक विशेष समय बताया गया है।
- भद्रा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की कन्या है।
धर्म डेस्क, इंदौर। Raksha Bandhan 2024: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन हर साल पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसके मंगल भविष्य की कामना करती हैं। वहीं, भाई भी अपनी बहन को रक्षा का वचन देते हैं। साथ ही कुछ उपहार भी देते हैं।
रक्षाबंधन का त्योहार ज्यादातर भद्राकाल में पड़ता है। पिछली बार की तरह इस बार भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहने वाला है। इसके कारण राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त काफी कम समय के लिए रहेगा।
कहा जाता है कि भद्राकाल में राखी बांधना बहुत अशुभ होता है। आइए, जानते हैं कि भद्राकाल क्या होता है और इस बार रक्षाबंधन पर भद्राकाल कितने समय तक रहेगा।
रक्षाबंधन 2024 भद्राकाल समय
इस साल रक्षाबंधन के दिन दोपहर 12:30 बजे तक भद्राकाल रहेगा, लेकिन इसका प्रभाव दोपहर 1:30 बजे तक रहेगा। इस दौरान रक्षाबंधन का पर्व नहीं मानना चाहिए। इसके बाद रक्षाबंधन पर्व मनाया जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में भद्राकाल को एक विशेष समय बताया गया है। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। भद्रा का समय विष्टीकरण कहलाता है। माना जाता है कि भद्राकाल के दौरान किए गए कार्य अशुभ होते हैं। भद्रा से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसका पुराणों में विस्तार से वर्णन किया गया है।
भद्रा से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की कन्या और शनि देव की बहन है। भद्रा के जन्म से पहले छाया ने भगवान शिव की तपस्या की थी और वरदान प्राप्त किया था कि उनकी पुत्री अद्वितीय शक्ति से संपन्न होगी। इसी वरदान के कारण भद्रा जन्म के समय से ही अत्यंत शक्तिशाली और अद्वितीय शक्तियों की स्वामिनी बन गई। इस कारण भद्रा को विष्टि करण भी कहा गया।
जन्म के समय से ही भद्रा का स्वभाव क्रूर और कठोर होने लगा था, जिसके कारण वह हमेशा अपने प्रभाव से किसी न किसी को नुकसान पहुंचाने लगी थी। भद्रा से जगत के लोग परेशान होने लगे थे। भद्रा के दुष्ट स्वभाव के कारण सूर्य देव को उनके विवाह की चिंता होने लगी। एक दिन अपनी चिंता को लेकर सूर्य देव, ब्रह्मा जी के पास गए।
ब्रह्मा जी ने दी भद्रा को आज्ञा
ब्रह्मा जी ने भद्रा को आकाश मंडल में स्थित होने की आज्ञा दी, ताकि भद्रा का प्रभाव पृथ्वी पर कम से कम पड़े। भद्रा को एक निश्चित समय में ही पृथ्वी पर आने की अनुमति दी गई, इसलिए जब भी वह पृथ्वी पर आती है, तो उस समय को भद्राकाल कहा जाता है। इसके साथ भद्रा को इस बात की अनुमति भी दी गई कि अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश का कोई मांगलिक कार्य करता है, तो तुम उन्हें में डाल सकती हो।
जो तुम्हारा अनादर करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ सकती हो। तभी से माना जाता है कि भद्रा अपने समय में सभी लोगों को कष्ट देती है और सभी मांगलिक कार्यों में विघ्न डालती है। इसी तरह भद्राकाल की उत्पत्ति हुई।
निश्चित समय के लिए ही धरती पर आती है भद्रा
भद्राकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि यह अनिष्टकारी परिणाम देते हैं। माना जाता है कि भद्रा का प्रभाव भद्राकाल के दौरान बहुत अधिक होता है, जिससे कोई भी अच्छा काम बिगड़ सकता है, इसलिए भद्रकाल में विवाह यात्रा या अन्य कोई शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
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