मिलावट का धीमा जहर
क्या यह सीधे-सीधे अपराध नहीं कि प्रदेश की पूरी जनता को खानपान की इस मिलावट के जरिए धीमा जहर दिया जा रहा है!
By Arvind Dubey
Edited By: Arvind Dubey
Publish Date: Tue, 14 Dec 2021 02:36:58 PM (IST)
Updated Date: Tue, 14 Dec 2021 02:36:58 PM (IST)
मध्य प्रदेश में बिकने वाली खाद्य सामग्री में मिलावट लगातार बढ़ती जा रही है। यह अत्यंत चिंताजनक स्थिति है। आम जन खाने-पीने की चीजों के जरिए अपने शरीर में धीमा जहर पहुंचने देने के लिए विवश हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह मिलावट को रोके। यह बात अब चौंकाती नहीं कि कि प्रदेश में निर्मित खाने-पीने की चीजों में मिलावट होती है। और शायद इस संदर्भ में सबसे बुरा यही हुआ है कि यह बात हमें चौंकाती तक नहीं। जिस खानपान सीधे हमारे शरीर में जाकर रक्त बनाता है, ऊर्जा देता है और हमें चलायमान रखता है, उसी खानपान में मिलावट इस स्तर तक पहुंचने लगी है कि सामग्री अब धीमा जहर बनती जा रही है। जिस इंदौर से लगभग आधे मध्य प्रदेश में किराना सहित खानपान का अन्य सामान पहुंचता है, उसी इंदौर में मिलावट का खेल बदस्तूर जारी है। मिलावट का यह प्रतिशत अब 20 प्रतिशत सामग्री तक पहुंच चुका है, जो बहुत खतरनाक है।
कहना न होगा कि मिलावट की यह कहानी सिर्फ इंदौर नहीं बल्कि प्रदेश्ा के हर छोटे-बड़े शहर में लिखी जा रही है। मुरैना, भिंड, शहडोल से लेकर मालवा के इंदौर, उज्जैन, रतलाम आदि शहर तो इसके लिए खासे बदनाम हो चुके हैं। देसी घी में पाम आइल, कृत्रिम एसेंट व वनस्पती तेल का मिलाना घी की गुणवत्ता को तो नष्ट कर ही देता है, लोगों के पेट में जाकर उनकी सेहत भी बिगाड़ता है। इसी तरह मसालों में रंग, चाक मिट्टी, लकड़ी का बुरादा, खसखस में मुर्गी को खिलाया जाने वाला दाना, काली मिर्च में काले रंग से रंगा मोटा साबूदाना, काजू में मूंगफली के दानों को पीसकर उन्हें सांचों से काजू के आकर में बदलकर मिलावट किए जाने जैसे काम किए जा रहे हैं। दूध में यूरिया या डिटर्जेंट मिले पानी की मिलावट करने के मामले तो अक्सर सामने आते ही रहते हैं। यह सब वह सामग्री है, जो प्रतिदिन, प्रत्येक घर में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा दिन में कम से कम एक बार तो खाई ही जाती है। यदि मसालों से लेकर अन्य खाद्य सामग्री में 20 प्रतिशत सामग्री मिलावटी बिक रही है, तो यह प्रमाण है कि खाद्य विभाग और प्रशासन अपनी अंटागफीली नींद में हैं।
क्या यह सीधे-सीधे अपराध नहीं कि प्रदेश की पूरी जनता को खानपान की इस मिलावट के जरिए धीमा जहर दिया जा रहा है! क्या यह खाद्य विभाग के मोटी तनख्वाह ले रहे अधिकारियों या प्रशासन में बैठे जिम्मेदारों को दिखाई नहीं देता! क्या आम जनता अपनी कड़ी मेहनत से कमाया हुआ धन खर्च कर अपने लिए जो खाद्य सामग्री खरीदती है, वह उसमें ‘जहर खरीदने को इसी तरह बाध्य होती रहेगी! ये प्रश्न बहुत गहरे और कठोर हैं, किंतु ये इतनी बार पूछे जा चुके कि अब ये शासन-प्रशासन को चुभते तक नहीं। यदि चुभते होते तो गली-कूचों में कुकुरमुत्तों की तरह खुल गई खानपान की सामग्री बनाने वाली फैक्ट्रियां धड़ल्ले से चल नहीं रही होती। प्रशासन को चाहिए कि सिर्फ त्योहारों पर जागने के बजाय पूरे वर्ष सजग रहे, ताकि नागरिक मिलावट के जहर से बच सकें।