Chaturbhuj Nath Temple: 1000 साल पुराना है ये चतुर्भुज नाथ मंदिर, रॉक पेंटिंग करती है पर्यटकों को आकर्षित
यहां प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्रों के एक पूरी श्रृंखला मौजूद है, जिसमें 2500 से ज्यादा शैलचित्र मौजूद है, जो प्रागैतिहासिक कालीन मानवों की दैनिक जीवन और क्रीड़ा को पेश करती है।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Tue, 07 May 2024 01:06:29 PM (IST)
Updated Date: Tue, 07 May 2024 01:09:16 PM (IST)
HighLights
- चतुर्भुज नाथ मंदिर के 5 किलोमीटर के रास्ते में छोटी-छोटी गुफाएं बनी हुई है।
- रॉक पेंटिंग पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है।
- गांधी सागर अभयारण्य में स्थित प्राचीन जल निकायों के लुभावने दृश्य देते हैं।
लाइफस्टाइल डेस्क, इंदौर। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड की ओर से राज्य के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों पर बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कई कोशिश की जा रही है। ऐसे में मंदसौर जिले में स्थित शांत भानपुरा में विरासत और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत खजाने को देखने लिए भारी तादाद में पर्यटक पहुंच रहे हैं। यहां हजारों साल पुरानी रॉक पेंटिंग पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है। मंदसौर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूरी स्थित चतुर्भुज नाथ मंदिर हजारों प्राचीन शैल चित्रों से सुसज्जित ऐतिहासिक धरोहर है।
5 किमी में फैली है छोटी-छोटी गुफाएं
यहां चतुर्भुज नाथ मंदिर के 5 किलोमीटर के रास्ते में छोटी-छोटी गुफाएं बनी हुई है, जिसमें स्थित रॉक पेंटिंग पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है। इसके अलावा गांधी सागर अभयारण्य में स्थित प्राचीन जल निकायों के लुभावने दृश्य देते हैं।
अभयारण्य क्षेत्र में स्थित 1000 साल पहले बना चतुर्भुज नाथ मंदिर भी अद्भुत व ऐतिहासिक है। इसके पास से एक बारहमासी नाला बहता है, जिसे चतुर्भुज नाला कहा जाता है। यहां प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्रों के एक पूरी श्रृंखला मौजूद है, जिसमें 2500 से ज्यादा शैलचित्र मौजूद है, जो प्रागैतिहासिक कालीन मानवों की दैनिक जीवन और क्रीड़ा को पेश करती है।
प्रशासन लगातार करता है निगरानी
मंदसौर कलेक्टर दिलीप कुमार यादव की ओर से भी यहां लगातार निगरानी की जाती है और मूलभूत जरूरत को पूरा किया जा रहा है। इस पूरे इलाके में पर्यटन को बढ़ावा देने वाली कई कार्य किए जा रहे हैं। गुफा अपने मुहाने पर लगभग 1.4 मीटर (4.6 फीट) चौड़ी है और अंत में अपने मुंह से 8.4 मीटर (28 फीट) की गहराई पर बंद हो जाती है। गुफा की ऊंचाई लगभग 7.4 मीटर (24 फीट) है। इसकी दोनों ऊर्ध्वाधर दीवारों पर 500 से अधिक गहरे पेटीले कप्यूल हैं। इसकी खोज 1992 में रमेश कुमार पंचोली ने की थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भारत में प्रारंभिक पेट्रोग्लिफ्स के अध्ययन के लिए भानपुरा के पास दाराकी-चट्टान क्षेत्र को लिया और 2002 में गिरिराज कुमार के नेतृत्व में खुदाई शुरू की। दाराकी-चट्टान इस गुफा में एक व्यापक रॉक कला के अतीत का खुलासा करता है। यहां शोध करने वाले विशेषज्ञों का दावा है कि यह “दुनिया की सबसे पुरानी रॉक कला” है, जो लगभग 2 से 5 लाख (200,000-500,000) वर्ष पुरानी है।
ऐसे पहुंचे मंदिर तक
हवाई मार्ग से
- उदयपुर, राजस्थान (230 किमी)
- इंदौर, एमपी (310 किमी)
- भोपाल, एमपी (330 किमी)
रेल मार्ग से
- भवानी मंडी, राजस्थान (40 किमी)
- कोटा, राजस्थान (104 किमी)
- मंदसौर, एमपी ( 140 कि.मी.)