Bijapur Naxal Attack: नासूर बने नक्सलवाद पर अब आर-पार की बारी

Bijapur Naxal Attack: नासूर बने नक्सलवाद पर अब आर-पार की बारी


विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलियों को मुख्य धारा में लाकर उनके लिए लागू होने जा रही पुनर्वास नीति के सफल क्रियान्वयन से नक्सलवाद को खुद हद तक समाप्त किया जा सकता है।

ऐसा नहीं है कि इसके लिए पहले कभी प्रयास नहीं हुए हैं। इसके पहले भी सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद भी थोड़े-थोड़े समय पर ही नक्सली सक्रिय होकर सुरक्षा बलाें को चुनौती देते रहे हैं, मगर कुछ न कुछ चूक की वजह से मिशन पूरा नहीं हो पाया है।

पिछले वर्षों में भी सुरक्षाबलों, राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों और ग्रामीणों की हत्या करने का रिकार्ड नक्सलियों ने बना रखा है। ऐसे में नक्सलियों से पूरी तरह से निपटना अभी भी चुनौती बना हुआ है।

हालांकि इस बात से गुरेज नहीं किया जा सकता है कि प्रदेश में पिछले 13 महीने की मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार के नाम नक्सलवाद के खिलाफ चले अभियान में एतिहासिक उपलब्धि दर्ज हो चुकी है। इस समयावधि में विष्णु सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में उल्लेखनीय प्रगति की है।

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इस दौरान 221 नक्सली मारे गए हैं, 925 नक्सलियों की गिरफ्तारियां हुई हैं और 738 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। यह कह सकते हैं कि नक्सली क्षेत्र में सक्रिय 1800 से अधिक नक्सली ठिकाने लग चुके हैं। ये निस्संदेह सुरक्षाबलों की बड़ी कामयाबी कही जा सकती है कि नक्सलियों को योजनाएं अंजाम देने से पहले ही मार गिराया गया, परन्तु अभी भी नक्सलियों के मनोबल को तोड़ने के लिए काम करने की दरकार है।

बीजापुर की घटना इसकी तस्दीक कर रही है कि खूफिया तंत्र भी नक्सलियों के मूवमेंट पर सटीक जानकारी जुटाने में फेल साबित हुआ है। अभी भी प्रदेश में लगभग एक हजार नक्सलियों के सक्रिय होने की जानकारी है।

खूफिया सूत्रों के अनुसार इन नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराने, गिरफ्तार करने के बाद ही नक्सलवाद की लड़ाई जीती जा सकेगी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का मार्च 2026 तक नक्सलियों का सफाया करने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा।

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नक्सलियों के संगठन को करना पड़ेगा कमजोर

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि नक्सली क्षेत्र में एक भी नक्सली नेता केंद्र और राज्य सरकार के नक्सल विरोधी मुहिम के लिए घातक हो सकता है, इसलिए हर नक्सली का खात्मा जरूरी है, ताकि नक्सलियों के संगठन को पूरी तरह से तोड़ा जा सके।

बस्तर के आदिवासी युवा नक्सलियों के प्रति आकर्षित न हों, इसके लिए उतनी ही लड़ाई लड़ने की आवश्यकता है जितनी की नक्सलियों से बंदूक की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। नक्सली आदिवासी समूहों को यह कहकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं कि सरकारें उनके संसाधनों पर पूंजीपतियों को कब्जा दिलाने का प्रयास करती हैं।

ऐसे में राज्य सरकार को चाहिए कि आदिवासी समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए वहां औद्योगिक इकाइयों का विस्तार करे। यहां के युवाओं को नाैकरी दे ताकि वह नक्सलियों के चंगुल में न फंस सकें। हालांकि हाल में ही राज्य सरकार ने बस्तर ओलिंपिक का आयोजन करके बस्तर के आदिवासियों युवाओं को जोड़ने का काम किया है।

इस आयोजन का जिक्र देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी किया था। इसके बाद से यहां के युवाओं और जवानों में नए उत्साह का संचार हुआ है। इस तरह के आयोजन इस क्षेत्र में निरंतर होते रहना चाहिए। वहीं नक्सलियों को अत्याधुनिक सूचना प्रणाली, हेलीकाप्टर आदि के जरिए उन पर नकेल कसने की कोशिश निरंतर होनी चाहिए।

इसके अलावा नक्सली समूहों को मिलने वाली वित्तीय मदद, साजो-सामान आदि की पहुंच रोकने और स्थानीय लोगों से उनकी दूरी बढ़ाने के भी प्रयास तेज करने से कामयाबी मिल सकती है। प्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद बस्तर के आदिवासियों के जीवन में बदलाव आ रहा है। यहां विकास की गति तेज हुई है, जिसे और अंदरूनी इलाकों तक पहुंचाने की दरकार है।

नक्सली गतिविधियों के कारण शासन-प्रशासन द्वारा संचालित योजनाओं का समुचित लाभ भी अंदरुनी इलाकों में स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा था। इस सब समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार द्वारा ‘‘नियद नेल्ला नार‘‘ (अपका अच्छा गांव) संचालित की जा रही है।

इसमें सुरक्षा कैंपों के पांच किलोमीटर के दायरे वाले गांवों में केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ शत-प्रतिशत हितग्राहियों तक पहुंचाने की मुहिम चलाई जा रही है।

इसका असर भी देखने को मिल रहा है। स्थानीय हाट बाजार अब गुलजार होने लगे हैं। बंद पड़े हाट बाजार और स्कूल अब फिर से शुरू हो रहे हैं। जिससे बस्तर की तस्वीर बदलती जा रही है और बस्तर में पुनः रौनक लौटी है। इस प्रयास को और अधिक तेज करना होगा, क्योंकि मार्च 2026 का हर कोई इंतजार कर रहा है।

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