Kamakhya Devi: हर साल तीन दिनों के लिए बदल जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी, देवी कामाख्या से जुड़ा है रहस्य

Kamakhya Devi: हर साल तीन दिनों के लिए बदल जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी, देवी कामाख्या से जुड़ा है रहस्य

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देशभर में प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर में देवी की योनि पूजा की जाती है। योनि भाग होने के कारण यहां देवी रजस्वला भी होती हैं। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां साल में एक बार देवी कामाख्या को मासिक धर्म होता है। इस दौरान तीन दिनों तक देवी का दर्शन भी वर्जित रहता है। इन्हीं दिनों ब्रह्मपुत्र नदी का पानी रंग बदलकर लाल हो जाता है।

By Ekta Sharma

Publish Date: Sun, 23 Jun 2024 09:48:35 AM (IST)

Updated Date: Sun, 23 Jun 2024 10:36:02 AM (IST)

Kamakhya Devi: हर साल तीन दिनों के लिए बदल जाता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी, देवी कामाख्या से जुड़ा है रहस्य
असम के गुवाहाटी में नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी

HighLights

  1. ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे है देवी कामाख्या का मंदिर
  2. कामाख्या धाम में होता महाअम्बुबाची मेले का आयोजन
  3. इस दौरान लाल रहता है ब्रह्मपुत्र नदी का पानी

धर्म डेस्क, इंदौर। Ambubachi Mela: देवी सती के 51 शक्तिपीठ में से एक कामाख्या देवी मंदिर है। इस मंदिर में हर साल चार दिन तक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर की श्रद्धालु शामिल होते हैं। कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर असम के गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती की योनि का भाग गिरा था। यहां देवी सती की पूजा योनी के रूप में की जाती है।

तीन दिन बंद रखे जाते हैं मंदिर के कपाट

इस बार कामाख्या धाम में महाअम्बुबाची मेले की शुरुआत हो चुकी है, जो कि 26 जून तक चलेगा। कहा जाता है कि यहां हर साल ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। मान्यता है कि जब मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, तो उस दौरान नदी का पानी लाल रहता है। इन तीन दिनों के दौरान मंदिर के कपाट भी बंद रखे जाते हैं। कहा जाता है कि देवी कामाख्या पारंपरिक महिलाओं की तरह ही मासिक धर्म में तीन दिनों तक विश्राम करती हैं।

तंत्र विद्या के लिए खास समय

महाअम्बुबाची मेले में शामिल होने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में तांत्रिक आते हैं। कामाख्या मंदिर को तांत्रिक शक्तिवाद का केंद्र माना जाता है। यहां पर साधु भी आध्यात्मिक गतिविधियों का अभ्यास करने आते हैं। तांत्रिकों के लिए अम्बुबाची का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है।

इस अवधि के दौरान दैनिक पूजा पाठ बंद होते हैं। साथ ही सभी कृषि कार्य भी वर्जित माने जाते हैं। विधवाएं, ब्राह्मण और ब्रह्मचारी इन दिनों पके हुए भोजन का सेवन नहीं करते हैं। तीन दिनों के बाद घर के सामान, बर्तन और कपड़ों को शुद्ध किया जाता है। साथ ही घर को भी पवित्र किया जाता है। इसके बाद ही कामाख्या देवी की पूजा शुरू होती है और मंदिर में प्रवेश दिया जाता है।

प्रसाद में दिया जाता है लाल कपड़ा

इस मंदिर में भक्तों को दो प्रकार का प्रसाद दिया जाता है, जो कि अंगोदक और अंगवस्त्र या अंबुबाची कहलाते हैं। अंगोदक का अर्थ है झरने का पानी और अंबुबाची का अर्थ है देवी मां के पास रखा कपड़ा। मान्यता है कि जब देवी को तीन दिनों का मासिक चक्र होता है, तो मंदिर में सफेद रंग के कपड़े बिछा दिए जाते हैं। तीन दिन के बाद जब मंदिर के दरवाजे खुलते हैं, तो सफेद कपड़ा देवी के रज से लाल हो जाता है। इसे प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’



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