Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन पर क्यों की जाती है श्रवण कुमार की पूजा, राजा दशरथ से जुड़ी है कथा

Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन पर क्यों की जाती है श्रवण कुमार की पूजा, राजा दशरथ से जुड़ी है कथा

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रक्षाबंधन भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन पड़ता है। श्रावण मास की पूर्णिमा पर श्रवण कुमार का पूजन किया जाता है, जिसे सोना, सूण, श्रवण पूजा और सोन नाम से भी जाना जाता है। दशरथ जी ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने के लिए श्रवण पूजा का विश्व भर में प्रचार किया था।

By Ekta Sharma

Publish Date: Mon, 05 Aug 2024 11:00:47 AM (IST)

Updated Date: Mon, 05 Aug 2024 11:19:07 AM (IST)

Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन पर क्यों की जाती है श्रवण कुमार की पूजा, राजा दशरथ से जुड़ी है कथा
हर सनातनी इस दिन भाई को राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार की पूजा करता है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

HighLights

  1. राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार की पूजा की जाती है।
  2. श्रवण कुमार की पूजा की परंपरा सदियों से चल रही है।
  3. इनकी पूजा करने का प्रचार राजा दशरथ ने किया था।

धर्म डेस्क, इंदौर। Raksha Bandhan 2024: हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का त्योहार काफी खास माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों को राखी बांधती हैं। यह त्योहार देशभर में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर घर में इस पर्व को लेकर उत्साह देखने को मिलता है। इस साल रक्षाबंधन 19 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा।

हम सभी जानते हैं कि यह पर्व मनाने से पहले रक्षाबंधन पर श्रवण कुमार की पूजा की जाती है। इस दिन सबसे पहले उनको रक्षा सूत्र अर्पित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन श्रवण कुमार की पूजा क्यों की जाती है। आइए, जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा।

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इस कारण की जाती है श्रवण कुमार की पूजा

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने अपने शिकार की तलाश में अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र श्रवण कुमार को तीर से मार दिया था। श्रवण कुमार की मृत्यु ने उन्हें अंदर तक झकझोर कर रख दिया था, इसलिए उन्होंने सबसे पहले पूरी दुनिया में सावन की पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा करने का प्रचार किया। तभी से सावन की पूर्णिमा के दिन राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार की पूजा की जाती है।

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दशरथ जी ने मारा श्रवण कुमार को तीर

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन अयोध्या के राजा दशरथ जंगल में शिकार करने गए थे और उसी दिन नेत्रहीन माता-पिता का इकलौता पुत्र श्रवण कुमार भी उसी जंगल से गुजर रहा था। उनके माता-पिता को रात में प्यास लगी।

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श्रवण कुमार कभी अपने माता-पिता को प्यासे नहीं देख सकते थे, इसलिए वे पानी लाने के लिए जंगल के अंदर चले गए। दशरथ जी भी वहीं छुपे हुए थे और शिकार के लिए हिरण की प्रतीक्षा कर रहे थे। यह रात थी। जंगल में घना अंधेरा था, दशरथ जी आवाज सुनकर निशाना लगा रहे थे।

तभी उन्हें श्रवण कुमार के जग में पानी भरने की आवाज सुनाई दी और दशरथ जी ने यह समझ कर कि यह किसी जानवर की आवाज है, तीर चला दिया। वह तीर श्रवण कुमार को लगा और उनकी मृत्यु हो गई।

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राजा दशरथ ने किया था प्रचार

यह देखकर राजा दशरथ बहुत दुखी हुए। उन्होंने माफी मांगी और श्रवण कुमार के माता-पिता को घटना के बारे में बताया। यह जानकर उनके माता-पिता बहुत दुखी हुए। तब दशरथ जी ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने के लिए श्रावणी के दिन श्रवण पूजा का विश्व भर में प्रचार किया और उसी दिन से सभी सनातनी राखी के दिन श्रवण पूजा करते हैं।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’



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